जो मुग़ल वंश को भारत मे लाया :— बाबर
ऐसा माना जाता है कि 1526 मुग़ल वंश की नींव रखने वाले मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे. मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ.
★ बाबर का जन्म , और उसका बचपन—–
24 फरवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में ‘ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर’ का जन्म हुआ. बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पांचवा एवं माता की ओर से चंगेज खान का चौदहवां वंशज था. बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्जा था। उनकी माँ का नाम कुतलुग निगार ख़ानुम था। उनके पिता फरगाना नाम के छोटे से राज्य के शासक थे. पिता की मौत के बाद महज 11 साल की उम्र में ही राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी गई उन्हें कम उम्र में ही सिंहासन पर बिठा दिया गया इसकी वजह से उन्हें अपने रिश्तेदारों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था। बाबर ने 1507 ई में बादशाह की उपाधि धारण की, जिसे अब तक किसी तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी.
★ बाबर की बेगम और बच्चे :——-
आयेशा सुलतान बेगम, जैनाब सुलतान बेगम, मौसमा सुलतान बेगम, महम बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफझाई, गुलनार अघाचा उनकी बेगमों का नाम है।
● पुत्र/पुत्रियां :—- हुमायूं, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिंदल मिर्जा, फख्र -उन-निस्सा, गुलरंग बेगम, गुलबदन बेगम, गुलचेहरा बेगम, अल्तून बिषिक, कथित बेटा
बाबर ने 1526 ई से 1530 ई तक शासन किया.
★ बाबर की भाषा—- बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी लेकिन फारसी में बाबर को महारत हासिल थी. उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी थी.
★ जब बाबर को आया भारत आने का न्योता:-
मुगल सम्राट बाबर मध्य एशिया में अपना कब्जा जमाना चाहता था लेकिन बाबर मध्य एशिया में शासन करने में असफल रहा लेकिन फिर भी मुगल बादशाह के मजबूत इरादों ने उन्हें कभी हार नहीं मानने दी, उनके विचार हमेशा उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे यही वजह है कि मुगल बादशाह की नजर भारत पर गई तब भारत की राजनीतिक दशा भी बिगड़ी हुई थी जिसका मुगल सम्राट ने फायदा उठाया और भारत में अपना सम्राज्य फैलाने का फैसला लिया। उस समय दिल्ली के सुल्तान कई लड़ाईयां लड़ रहे थे जिस वजह से भारत में राजनैतिक बिखराव हो गया। आपको बता दें कि उस समय भारत के उत्तरी क्षेत्र में कुछ प्रदेश अफगान और कुछ राजपूत के अंदर थे, लेकिन इन्हीं के आस-पास के क्षेत्र स्वतंत्र थे, जो अफगानी और राजपूतों के क्षेत्र में नहीं आते थे। उस समय जब बाबर ने दिल्ली पर हमला किया था तब बंगाल, मालवा, गुजरात, सिंध, कश्मीर, मेवाड़, दिल्ली खानदेश, विजयनगर एवं विच्चिन बहमनी रियासतें आदि अनेक स्वतंत्र राज्य थे। आपको बता दें कि बाबर ने अपनी किताब बाबरनामा में भी पांच मुस्लिम शासक और दो हिन्दू शासकों का जिक्र किया है। सभी मुस्लिम शासक दिल्ली, मालवा, गुजरात और बहमनी से थे जबकि मेवाड़ और विजयनगर से दो हिन्दू शासक थे। इसके साथ ही मुगल बादशाह बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में विजयनगर के तत्कालीन शासक कृष्णदेव राय को समकालीन भारत का सबसे ज्यादा बुद्धिमान और शक्तिशाली सम्राट कहा है। जब मुगल बादशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था तब दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी था लेकिन वो दिल्ली की सल्लतनत पर शासन करने में सक्षम नहीं था यहां तक की पंजाब के सूबेदार दौलत खान को भी इब्राहिम लोदी का काम रास नहीं रहा था उस समय इब्राहिम के चाचा आलम खान दिल्ली की सलतनत के लिए एक मुख्य दावेदार थे और वे बाबर की बहादुरी और उसके कुशल शासन की दक्षता से बेहद प्रभावित थे इसलिए दौलत खां लोदी और इब्राहिम के चाचा आलम खा लोदी ने मुगल सम्राट बाबर को भारत आने का न्योता भेजा था। वहीं ये न्योता बाबर ने खुशी से स्वीकार किया क्योंकि बाबर की दिल्ली की सल्तनत पर पहले से ही नजर थी और उसने इस न्योते को अपना फायदा समझा और मुगल सम्राज्य का विस्तार भारत में करने के लिए दिल्ली चला गया। आपको बता दें बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ईं में बाजौर पर किया था और उसी आक्रमण में ही उसने भेरा के किले को भी जीता था। बाबरनामा में मुगल बादशाह बाबर ने भेरा के किले की जीत का उल्लेख किया है वहीं इस लड़ाई में बहादुर शासक बाबर ने सबसे पहले बारूद और तोपखाने का भी इस्तेमाल किया था। मुगल बादशाह बाबर पानीपत की लड़ाई में विजय हासिल करने से पहले भारत पर 4 बार आक्रमण कर चुका था और पानीपत की लड़ाई उसकी भारत में पांचवीं लड़ाई थी जिसमें उसने जीत हासिल की थी। और अपने सम्राज्य को आगे बढ़ाया था।
★ छल कपट से किया था काबुल पर कब्जा—–
बाबर ने समरकंद को जीतने के लिए तीन बार प्रयास किये थे, पर सभी में उसे असफलता ही मिली. इसलिए जल्दी ही उसने कपट तथा चतुराई से 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया. अब उसने भारत की ओर ध्यान दिया, जो उसके जीवन की बड़े लंबे समय से लालसा थी. बाबर के भारत आक्रमण का मूल कारण, भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से भी अधिक स्वयं उसकी दयनीय तथा असहाय अवस्था थी. वह काबुल के उत्तर अथवा पश्चिम में संघर्ष करने की अवस्था में न था. हां, वह भारत की धन संपत्ति जरूर लूटना चाहता था. इसके लिए उसने अपने पूर्वजों महमूद गजनवी तथा मोहम्मद गौरी का हवाला देकर भारत को तैमूरिया वंश का क्षेत्र बताया था.
★ 3000 से भी अधिक निर्दोषों को मारा :——
बाबर की कट्टरता और क्रूरता को इसी से समझा जा सकता है कि उसने अपने पहले आक्रमण में ही बाजौर के सीधे-सादे 3000 से भी अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी. वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि बाजौर वाले विद्रोही तथा मुसलमानों के शत्रु थे. यहां तक कहा जाता है कि उसने इस युद्ध के दौरान एक पुश्ते पर आदमियों के सिरों को काटकर उसका स्तंभबनवा दिया था. यह नृशंस अत्याचार उसने ‘भेरा’ पर आक्रमण करके भी किये.
★ गुरुनानक ने देखा था बाबर का अत्याचार:——
बाबर द्वारा किए गया तीसरा, चौथा व पांचवां आक्रमण- जो, सैयदपुर, लाहौर तथा पानीपत की घटनाओं से जुड़ा हुआ था. माना जाता है इस दौरान गुरुनानक जी ने बाबर के वीभत्स अत्याचारों को अपनी आंखों से देखा था. उन्होंने इन आक्रमणों को पाप की बारात और बाबर को यमराज की संज्ञा दी थी. इन आक्रमणों में बाबर ने किसी के बारे में नहीं सोचा. उसके रास्ते में बूढ़े, बच्चे और औरतें, जो कोई भी आया वह उन्हें काटता रहा. वह किसी भी कीमत पर अपने साथ ज्यादा से ज्यादा धन लूट कर ले जाना चाहता था.
★ बाबर द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध –
● पानीपत का प्रथम युद्ध:-21 अप्रैल1526ई(इब्राहिम लोदी एवं बाबर)इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ था।
● खानवा का युद्ध:-17मार्च1527ई (राणा सांगा एवं बाबर)इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ था।
● चंदेरी का युद्ध:- 29जनवरी1528ई (मेदनी राय एवं बाबर) इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ था।
● घाघरा का युद्ध:- 6 मई 1529 ई(अफगानों एवं बाबर के बीच)इस युद्ध में भी बाबर विजयी हुआ था।
(पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुग़लमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया था। उस्ताद अली एवं मुस्तफा बाबर के दो प्रसिद्ध निशानेबाज थे,जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध मे भाग लिया था।)
खानवा के युद्ध(1527) में बाबर ने जेहाद का नारा दिया था।तथा इस युद्ध के बाद बाबर को गाजी की उपाधि दी गई थी।
★ बाबर का इंतकाल:——-
48 साल में 27 सितंबर में 1530 ई को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई. बाबर के शव को पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया. जहां उसका मकबरा बना हुआ है. उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं मुग़ल बादशाह बना.
★ बाबर की आत्मकथा:—-
बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामे’ की रचना की थी, जिसका अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम खानखाना ने किया.