” सजा के गले में गुलसिता रख देना
तुम अपने घर का नाम फ़तेह मैदान रख देना
खुदा ने तुम चाँद से बेटा दिया पैदा
तुम उसका नाम टीपू सुल्तान रख देना “
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“राख हो जाये गए आग लगाने वाले
राम के देश में सीता को जलने वाले
याद हमें आते है वो हमें टीपू सुल्तान
खून से अपने चरागों को जलने वाले“
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हद से ज्यादा भी प्यार मत करना
दिल हर एक पे निसार मत करना
क्या खबर किस जगह पे रुक जाये
सास का एतबार मत करना
आईने की नज़र न लग जाये
इस तरह से श्रृंगार मत करना
तीर तेरी तरफ ही आएगा
तू हवा में शिकार मत करना
डूब जाने का जिसमे खतरा है
ऐसे दरिया को पार मत करना
देख तौबा का दर खुला है अभी
कल का तू इंतज़ार मत करना
मुझको खंज़र ने ये कहाँ है एजाज़
तू अँधेरे में वार मत करना –
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धोखा वफ़ा की राह में खाएं है हम ज़रूर
लेकिन किसीके साथ में धोखा नहीं किया
हमने गुज़ार दी है फकीरी में जिंदगी
लेकिन कभी ज़मीर का सौदा नहीं किया
दिल को जला के दी है ज़माने को रौशनी
जुगनू पकडके हमने उजाला नहीं किया
ऐबों को मेरे ढाँप दिया आपने हुज़ूर
क्या बात है कि आपने चर्चा नहीं किया
ऐ दोस्त और क्या मैं वफ़ा का सबूत दूं
वादा-ए-वफ़ा किया हूँ वादा नहीं किया
मयखाना पी गया ‘एजाज़’ ने मगर
लेकिन कभी भी पी के तमाशा नहीं किया.
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जमीन अच्छी है ये आसमान अच्छा है
हम अच्छे है तो सारा जहां अच्छा है
बड़े सुकून से मुझको नींद आती है
तेरी हवेली से मेरा मकान अच्छा है
तमाम मुल्को में फैली हुई है बर्बादी
खुदा के फजल से हिंदुस्तान अच्छा है।