वाराणसी कहो, काशी कहो, कहो बनारस लाल , भूत ,भभूत मिले यहाँ और मिले महाकाल।
विश्व की सांस्कृतिक नगरी बनारस अलग-अलग रंगों की चादर में लिपटा हुआ है. मीठे से लेकर तीखे, हर तरह के स्वादिष्ट पकवान खाने के शौकीन हैं या फिर आप भी गंगा के किनारे घाट की खूबसूरती निहारते हुए सुकून की तलाश में हैं तो एक बार बाबा भोलेनाथ की नगरी बनारस जरूर जाएं.
बनारस के बिना उत्तर प्रदेश का नाम अधूरा सा लगता है। उत्तर प्रदेश का जीता जागता ऐसा शहर जहाँ लोग जीने भी आते है और यहाँ मरना भी चाहते है। शहर कभी सोता नही हर वक़्त , हर चौराहे पर भगौने पे उबलती चाय , चाय के बगल मे कत्था, चूना और केवडा को पान पत्ती पे लपेटे पान ये कहता है कि गुरु कहि भी रहो , कहि भी जाओ। बस एक बार गँगा आरती देखने आओ।
बनारस एक ऐसा शहर जिसे यदि शब्दों मे कोई बयाँ करें , शब्द ख़त्म हो जाये पर महिमामंडन कभी ख़त्म न हो। तो आइए चलते है एक छोटे से सफ़र की ओर, जो खिंचे अपनी ओर।
प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।”
कौन है ये बनारस :
वाराणसी को बनारस और काशी भी कहा जाता है। ये धार्मिक शहर, गंगा नदी के तट पर है। हिंदू, जैन, और बुद्ध धर्म प्रचलित है। यहाँ नाथो के नाथ भोले नाथ का निवास है। भगवान शिव इस शहर के कर्ता धर्ता है। वारणासी उत्तर भारत का सांस्कृतिक केंद्र भी रहा है। बनारस मे मुख्य रूप से भाषा हिंदी और भोजपुरी और बनारसी बोली जाती है। ये शहर खाने पीने का भी बहुत शौकीन है।
यहाँ दिन के हर पहर के हिसाब से खाना और नाश्ता मिलता है। सुबह का नाश्ता कचौड़ी, सब्जी और जलेबी दोपहर मे छोला समोसा , और शाम को लस्सी ,गोलगप्पा, टमाटर चाट और आलू की टिक्की यहाँ खाने को मिलता है।
तो गुरु ये था बनारस का एक छोटा सा ,चटपटा सा परिचय। अब इसको थोड़ा और क़रीब से जानते है। आइये !
बनारस मे पहले पेट पूजा :
बनारस जाने वालों के लिए विशेष सलाह है कि बनारस की चाट और मिठाइयों का लुत्फ जरूर उठाएं. चटपटी चाट के लिए जहां काशी चाट भंडार, अस्सी के भौकाल चाट, दीना चाट भंडार और मोंगा आदि काफी लोकप्रिय है, वहीं, ठठेरी बाजार की ताजी और रसभरी मिठाइयों को दुनियाभर में पसंद किया जाता है. अगर आपको दूध, दही और मलाई रास आती है तो बनारस जाकर ‘पहलवान की लस्सी’ जरूर पिएं क्योंकि ऐसी लस्सी कहीं और नहीं मिलने वाली. और एक बात जिसके बिना बनारस का जिक्र अधूरा है वो है यहां की पान जो कि पूरी दुनिया में मशहूर है और उससे भी ज्यादा मशहूर हैं यहां के पान के शौकीन लोग जो गाल के एक तरफ पान घुलाए रखते हैं और दूसरी तरफ से गुलाब जामुन खा लिया करते हैं.
थोड़ा घूमते है बनारस के इतिहास मे : ऐसा माना जाता है कि बनारस कि स्थापना भगवान शिव ने की थी। महाभारत के पांडव भी, शिवा की खोज करते हुए, इस शहर में पहुँचे। गौतम बुद्ध ने यहाँ बुद्ध धर्म की स्थापना की। भक्ति काल के कई मुख्य लोगों का जन्म वारणासी में हुआ था। कबीरदास उनमें से एक हैं। सन् 1507 के महाशिवरात्री के समय में गुरु नानक इस शहर में आए, और सिख धर्म फैलाए।
औरंगज़ेब के राज में, बनारस के कई सारे मंदिर तुड़वा दिए गए थे। अग्रेज़ों के राज में, बनारस को एक नया राज्य बना दिया गया था, जिसकी राजधानी रामनगर थी।
क्या क्या घूमे बनारस मे : अगर आप बनारस घूमने आए है तो आपको करना कुछ नही है बस आपके पैरों मे पैदल चलने का दम होना चाहिए क्योंकि यहाँ घूमने का असली मजा पैदल ही आता है और मुँह मे दबाइये एक बनारसी पान और निकल पड़िये काशी यात्रा पे।
बनारस के घाट तो बनारस की शान हैं जिसका अहसास आपको वहां जाकर ही होगा. आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन घाट की सीढ़ियों पर बैठ कर गंगा को खूबसूरती को निहारना आपको जितना सुकून देता है वैसा सुकून शायद ही किसी काम में मिले. सबसे खास बात ये कि इस अद्भुत खूबसूरती को देखते कब मिनट घंटे में बदल जाते हैं पता भी नहीं चलता. यहाँ 84 घाट है ,अस्सी घाट, राजघाट, तुलसी घाट, से होते हुए आप आ जाइये दशाश्वमेध घाट जहाँ विश्व प्रसिद्ध होती है गँगा आरती। कहा जाता है कि ब्रहमा ने इस घाट का निर्माण किया शिवा के लिए। इन्ही घाटों मे से मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट जहाँ पे मरे हुए लोगों को खुद भगवान शिव कानों मे राम नाम फूंक उनको मोक्ष देते है और मरने जीने के जंजाल से मुक्ति दिलाते है।
सारनाथ आइये, यहाँ भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान का पहला उपदेश दिया था, BHU आइये जहाँ पे मालवीय जी ने एक ऐसा शिक्षा का बाग लगाया है जहाँ से पढ़े हुए लोग काशी के गौरव का कारण बनते है।
रामनगर किला : यह गंगा के पूर्व तट, और तुलसी घाट के ठीक सामने बनाया गया है। इसे अठारवीं सदी में काशी नरेश राजा बलवंत सिंह द्वारा बनाया गया था। इस किले में कई सारे आँगन बनाए गए हैं।
जैन घाट : कहा जाता है कि वारणासी भगवान सूपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ का जन्म स्थल है। इस घाट पर तीन जैन मंदिर बनाए गए हैं। कहते हैं कि जैन महाराजाओं इस घाट को अपना बताते थे।
दशाश्वमेध घाट : यह वारणासी का मुख्य और सबसे पुराना घाट है।
गंगा स्नान : वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी से अटूट रिश्ता है. ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से आत्मा पवित्र होती है और सारे पाप धुल जाते हैं. बनारस जाकर गंगा में डुबकी लगाना बनारस की सैर के कुछ खास कामों में से एक है इसलिए वहां जाएं और गंगा स्नान जरूर करें.
मंदिर के दर्शन: बाबा भोलेनाथ की नगरी बनारस, घाट और मंदिरों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप बनारस गए और वहां के प्रमुख मंदिरों में दर्शन करने नहीं गए तो आप की यात्रा अधूरी रह ही जाएगी. बनारस का सबसे प्रमुख मंदिर है ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ इसके दर्शन करने दूर दूर से लोग आते हैं. अगर आप भी बनारस जाने की सोच रहे हैं तो भोलेनाथ के इस मंदिर में दर्शन जरूर करें और एक सबसे खास बात, वह ये कि इसके बाद काल भैरव बाबा के दर्शन जरूर करें. ऐसा कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद अगर काशी के कोतवाल के दर्शन नहीं किए तो पूजा अधूरी रह जाती है.
गंगा आरती: बनारस के घाट पर शाम को होने वाली गंगा आरती का नजारा वाकई अद्भुत होता है. शाम को बड़ी संख्या में लोग इस आरती को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं. हर रोज करीब 45 मिनट की आरती का ये नजारा एक बार तो आपको जरूर देखने जाना चाहिए.
कला , साहित्य का केंद्र है बनारस
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था
यहाँ के लोग करते क्या है
वैसे तो यहाँ के लोग टाइम पास बहुत करते है। आज मे जीना इनको बख़ूबी आता है। लेकिन अगर यहाँ काम की बात की जाए तो यहाँ बनारसी साड़ी बनाना, पर्यटकों को घुमाना जैसे काम करते है। यहाँ की बनारसी साड़ी, लक्ड़ी के खिलौने, काँच की चूड़ियाँ, पीतल की चीज़ें, और ढेर सारे हस्तशिल्प, बहुत ही प्रसिद्ध और प्रचलित हैं।
शिक्षा का बहुत बड़ा गढ़ है। यहाँ के लोग पढ़ना और पढ़ाना बहुत तरीक़े से जानते है।
मंदिरों में से वाराणसी में निम्न मंदिर बहुत प्रसिद्ध है:
- काशी विश्वनाथ मंदिर
- संकट मोचन हनुमान मंदिर
- पार्श्वनाथ जैन मंदिर
मसजिदों में से निम्न वारणासी में प्रसिद्ध हैं:
- अबदुल रज़ाक
- आलमगीरबिबि
- रज़िआ
- चौखम्बा
- दुर्गा मंदिर
यहाँ कई सारे विद्यालय और विश्व विद्यालय हैं। उन में कुछ निम्न हैं:
- बनारस हिंदू विश्व विद्यालय ।
- इंडियन इंस्टिट्युट ऑफ टेक्नॉलोजी।
- महातमा गाँधी काशी विद्यापीठ।
- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़।
- संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय