दोस्तों! क्या आपको पता है कि इंडिया और अमरीका मे एक चीज़ बहुत कॉमन है। जहाँ इंडिया दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। करीब 200 वर्ष पहले सन 1804 में यहां चुनाव की शुरुआत हुई। भारत की तरह अमेरिकी संसद में भी दो सदन होते हैं। पहला हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव जिसे प्रतिनिधि सभा भी कहा जाता है। इसके सदस्यों की संख्या 435 है। दूसरे सदन सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं। इस तरह संसद में कुल 538 सदस्य होते हैं।
द्विदलीय व्यवस्था : अमेरिका मे सिर्फ दो ही दल होते है। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट यहां दो प्रमुख पार्टियां हैं। अन्य दलों का यहां कोई वजूद नहीं है। राष्ट्रपति बनने की आकांक्षा रखने वाले उम्मीदवार सबसे पहले एक समिति बनाते हैं, जो चंदा इकट्ठा करने और संबंधित नेता के प्रति जनता का रुख भांपने का काम करती है। कई बार यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है।
कहां से शुरू होती है चुनाव प्रक्रिया :
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आयोवा और न्यू हैंपशायर से शुरू होती है। दोनों ही छोटे राज्य हैं मगर यहां की आबादी में 94 प्रतिशत लोग गोरे हैं, जबकि पूरे अमेरिका में गोरी आबादी 77 फीसदी है। यहां सबसे पहले कॉकस या प्राइमरी होता है। इन दो राज्यों में मिली जीत आगे की चुनावी मुहिम पर खासा असर डालती है। हालांकि यहां की जीत का अर्थ यह नहीं होता कि प्रत्याशी को पार्टी की उम्मीदवारी मिल ही जाएगी, लेकिन आयोवा और न्यू हैंपशायर की जीत मीडिया कवरेज दिलाने में जरूर मददगार होती है।
इलेक्शन के लिए डॉक्यूमेंट देने होते है :
अगर किसी व्यक्ति की उम्र 35 साल है और वो अमेरिका का मूल निवासी है या वो 14 साल से ज्यादा अमरीका मे रह रहा है तो राष्ट्रपति बनने के योग्य है और वह राष्ट्रपति पद की दावेदारी पेश कर सकता है. इसके बाद कोई भी अमेरिकी जो राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल होना चाहता है उसको अपने दस्तावेज फेडरल इलेक्शन कमीशन के पास जमा करवाने होते हैं. ऐसा चुनाव तारीख से एक साल पहले तक ही किया जा सकता है.
प्राइमरी चुनाव होते हैं अहम :
अगर कोई कोई अमेरिकी नागरिक चुनाव लड़ना चाहता है तो उसको ‘प्राइमरी’ इलेक्शन से गुजरना होता है। ये चुनाव का अहम और पहला स्टेप है। अलग अलग स्टेट्स में प्राइमरी चुनाव के जरिए पार्टियां अपने कैंडिडेट्स की शक्ति को टेस्ट करती है कि उनके साथ कितने लोगों का सपोर्ट है। वैसे तो इस प्रोसेस के बारे मे कोई संवैधानिक निर्देश तो नही है लेकिन फ़िर भी इसको किया जाता है। ये प्रोसेस दो तरीक़े का होता है।
प्राइमरी: ये तरीका ज्यादा परंपरागत है. ज्यादातर राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है. इसमें आम नागरिक हिस्सा लेते हैं और पार्टी को बताते हैं कि उनकी पसंद का उम्मीदवार कौन है.
कॉकस: इस प्रक्रिया का इस्तेमाल उन राज्यों में होता है जहां पर पार्टी का गढ़ होता है. कॉकस में ज्यादातर पार्टी के पारंपरिक वोटर ही हिस्सा लेते हैं. इस बार लोवा राज्य में कॉकस तरीका अपनाया जाएगा.
दोनों चुनावों में सबसे बड़ा अंतर यह होता है कि कॉकस में पार्टी के सदस्य जमा होते हैं. सार्वजनिक स्थल पर उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है, इसके बाद वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार चुनते हैं. वहीं प्राइमरी में बैलट के जरिए वोटिंग होती है.
नेशनल कन्वेंशन : जो भी कैंडिडेट प्राइमरी इलेक्शन मे जीतता है वो एलेक्शन के दूसरे स्टेप के लिए योग्य माना जाता है और शामिल होते है। इस स्टेप को जो कन्वेंशन कहा जाता है। कन्वेंशन में ये कैंडिडेट पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. इसी स्टेप मे कैंडीडेट अपना नामांकन की प्रक्रिया पूरी करते है।राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ही उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनते हैं.
चुनाव प्रचार के जरिए जुटाया जाता है समर्थन :
तीसरे चरण में चुनाव प्रचार होता है. इसमें अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार मतदाताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं. इसी दौरान उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर कई मुद्दों को लेकर बहस होती है. आखिरी हफ्ते में उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत लगा कर ‘स्विंग स्टेट्स’ को लुभाने में झोंक देते हैं. ‘स्विंग स्टेट्स’ वह राज्य होते हैं जहां का मतदाता किसी के भी पक्ष में मतदान कर सकता है.
कब होता है चुनाव : अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना बिलकुल तय होता है। यहां चुनावी साल के नवंबर महीने में पड़ने वाले पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को मतदान होता है। हालांकि यहां 60 दिन पहले वोट डालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस अवधि में अमेरिका से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी ऑनलाइन वोट डाल सकता है।
इलेक्टोरल कॉलेज करता है मतदान : राज्यों के मतदाता इलेक्टर का चुनाव करते हैं. ये इलेक्टर राष्ट्रपति पद के किसी न किसी उम्मीदवार का समर्थक होता है. ये इलेक्टर एक इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं. इसमें कुल 538 सदस्य होते हैं. इलेक्टर चुनने के बाद ही आम जनता की चुनाव में भागीदारी खत्म हो जाती है. आखिर में इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य मतदान के जरिए राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत जरूरी होते हैं.
इस तरह बनता है मंत्रिमंडल : अमेरिका मंत्रिमंडल बनाने की प्रक्रिया भारत से बिलकुल ही भिन्न है। यहां मंत्री बनने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी नहीं कि वह संसद का सदस्य हो, ना ही उसके लिए राजनीतिक दल का सदस्य होना जरूरी है। यदि राष्ट्रपति को लगता है तो वह विरोधी पार्टी के सदस्य अथवा किसी विषय विशेषज्ञ को भो मंत्री बना सकता है।
राष्ट्रपति बनने के लिए ज़रूरी बातें :
- अमेरिका में जन्म होना जरूरी है और अमेरिकी नागरिक ही हो
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
- 14 सालों से लगातार अमेरिका में ही रह रहा हो
- दो बार से ज्यादा कोई राष्ट्रपति नहीं बन सकता