जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य का एक परंपरागत खेल है जो वहां के गांवों में बड़े उत्साह के साथ खेला जाता है. इसे दक्षिण भारत के कृषि प्रधान विरासत का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. दरअसल, वर्ष का दिसम्बर और जनवरी माह तमिलनाडु में फसल कटाई का मौसम होता है. फसल कटने के बाद वहां चार दिनों तक ‘पोंगल’ उत्सव मनाया जाता है. इस उत्सव का तीसरा दिन पशु को समर्पित होता है और इसी दिन लोग जल्लीकट्टू का खेल खेलते हैं. परंपरा के अनुसार खेल की शुरुआत में तीन बैलों (सांड) को खुला छोड़ दिया जाता है और इसे कोई नहीं पकड़ता है. ये तीनों बैल उस गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं जिन्हें गांव की शान समझा जाता है. इन तीनों बैलों के जाने के बाद जल्लीकट्टू खेल का आगाज होता है.
तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में बैल को आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है. खेत जोतने से लेकर सामान ढ़ोने तक में बैल का यहां बहुतायत में उपयोग होता है. ऐसे में सभी चाहते हैं कि उनका बैल अधिक से अधिक मजबूत हो. फिर बैलों के बेहतर नस्ल के प्रजनन (Breeding) के लिए भी लोग बैलों का बलशाली होना आवश्यक मानते हैं. साथ ही तमिलनाडु के गांवों में बड़े-बड़े सींगों वाले लंबे-तगड़े बैल का होना शान की बात मानी जाती है. ऐसे में जल्लीकट्टू खेल के दौरान सभी को अपने-अपने बैलों की ताक़त को दिखाने का सुनहरा अवसर होता है.
इस खेल के तहत गांव के ताकतवर और मजबूत बैलों के सींग (Horn) में सिक्कों से भरी थैली बाँधी जाती है और उस बैल को लोगों की भीड़ में खुला छोड़ दिया जाता है. फिर लोग उस सिक्के की थैली को प्राप्त करने के लिए बैल को काबू में करने का प्रयास करते हैं. इस प्रयास में कई लोग न सिर्फ घायल होते हैं बल्कि अनहोनी की स्थिति में जान जाने की आशंका भी बनी रहती है. हर साल अनहोनी की एक-दो घटनाएं होती भी हैं. अभी तक की खबर के अनुसार इस साल भी दो लोगों को इस खेल में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. इस खेल में केवल इंसान ही नहीं बैल को भी दर्द से गुजरना पड़ता है. वे भी घायल होते हैं. अंततः जो भी बैल को काबू में करने और उसके सींग पर बंधे सिक्कों के थैले को प्राप्त करने में सफल होता है उसे खेल का विजेता घोषित कर ईनाम दिया जाता है।
जल्लीकट्टू का इतिहास
जल्लीकट्टू तमिल शब्द जल्ली और कट्टू से मिलकर बना है. अगर हम इतिहास के पन्नों में जाएं तो पता चलता है कि जल्लीकट्टू पौराणिक शब्द सल्लिकासु का अपभ्रंश है जहां सल्ली का अर्थ है सिक्के की थैली और कासु का तात्पर्य बैल के सींग से है. कहा जाता है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की लगभग 2500 वर्ष पुरानी परंपरा है. पौराणिक काल में योद्धा लोग अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए इस खेल का सहारा लेते थे. इस खेल के माध्यम से कुंवारी कन्याएं अपने वर का चुनाव करती थीं. यह सब उस स्वयंवर की तरह ही होता था, जिसमें किसी खास लड़की से शादी करने के लिए इच्छुक युवकों को ताकतवर बैल को काबू में करने की चुनौती मिलती थी और जो उसे काबू में कर लेता था उसे ही उस लड़की को अपना वर चुनना होता था।
तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में बैल को आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है. खेत जोतने से लेकर सामान ढ़ोने तक में बैल का यहां बहुतायत में उपयोग होता है. ऐसे में सभी चाहते हैं कि उनका बैल अधिक से अधिक मजबूत हो. फिर बैलों के बेहतर नस्ल के प्रजनन (Breeding) के लिए भी लोग बैलों का बलशाली होना आवश्यक मानते हैं. साथ ही तमिलनाडु के गांवों में बड़े-बड़े सींगों वाले लंबे-तगड़े बैल का होना शान की बात मानी मानी जाती थी। जल्लीकट्टू की वर्तमान परंपरा के अनुसार खेल में भाग लेने वाले बैलों को विशेष तौर पर तैयार किया जाता है. इसके लिए बैल को उकसाने और उसे तेज भागने का अभ्यास कई दिनों पूर्व से कराया जाता है. परन्तु कहा जा रहा है कि इस खेल में अब अनैतिकता ने अपना घर बना लिया है. इस खेल के विरोधी आरोप लगाते हैं कि जल्लीकट्टू खेल के दौरान बैलों के साथ क्रूरता की जाती है. मसलन, बैलों को उकसाने के लिए और उसे अधिक हिंसक बनाने के लिए बैलों को शराब पिलाया जाता है, उसे नुकीली चीजों से दागा जाता है, उसके आंखों में मिर्च का पाउडर डाला जाता है, उसके पूंछ को जोर-जोर से मरोड़ा जाता है आदि-आदि. विरोधी तो यहां तक आरोप लगाते हैं कि अब यह खेल सट्टा का एक बड़ा बाज़ार बन गया है.
क्या है विवाद?
- जल्लीकट्टू खेल में जो व्यक्ति बैल को सबसे अधिक समय के लिए रोक लेता है उसे सिकंदर का खिताब दिया जाता है। लेकिन बात इतनी आसान नहीं है। यह खेल धीरे-धीरे जानलेवा बन गया है।
- कभी कभी तो उनकी त्वचा पर एक ऐसा रसायन भी लगाया जाता है जिससे बैल उग्र हो सके और तेज भागे। इस खेल के दौरान कई व्यक्ति मौत के घाट भी उतर चुके हैं।
- आंकड़ें एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 से 2014 तक इस खेल में करीब 1110 लोग घायल हुए हैं और 17 से ज़्यादा मौतें हो गई। इसी के चलते 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- अदालत ने ऐसे आयोजनों को जानवरों के प्रति क्रूरता बताते हुए टिप्पणी की और कहा कि पशुओं को भी सम्मान के साथ जीने का हक है। इसके साथ ही कोर्ट ने कुछ नियम शर्तों के साथ जल्लीकट्टू को मंजूरी देने वाला तमिलनाडु का कानून निरस्त कर दिया था।
इसके अलावा साल 2011 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पशु कल्याण विभाग ने नोटिफिकेशन जारी करके पशुओं पर क्रूरता रोकथाम कानून 1960 के उपबंध 22 के तहत बैलों के प्रदर्शन केंद्रित कार्यों में इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी।
एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया और बैंगलोर के एक एनजीओ ने इस दौड़ को रोकने के लिए याचिका दायर की।