जहाँगीर अकबर के पुत्र थे। सलीम, मुराद और दानियाल (मुग़ल परिवार)। मुराद और दानियाल पिता के जीवन में शराब पीने की वजह से मर चुके थे। जँहागिर का प्रथम विवाह 1585 ई. में मानबाई से हुआ जो आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री व मान सिंह की बहन थी। इसके बाद उनका दूसरा विवाह मारवाड़ के राजा उदयसिंह की पुत्री जगतगोसाई (जोधाबाई) से हुआ। जहांगीर के समय को चित्रकला का स्वर्णकाल कहा जाता है।मुगल चित्रकला जहांगीर के काल में अपनी चरम सीमा पर थी. वह स्वयं भी उत्तम चित्रकार और कला का पारखी था. इस समय के कलाकारों ने चटख रंग जैसे मोर के गले सा नीला और लाल रंग का प्रयोग करना और चित्रों को त्रि-आयामी प्रभाव देना प्रारंभ कर दिया था.जहांगीर के शासन काल के मशहूर चित्रकार थे मंसूर, बिशनदास और मनोहर.जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक का हो या जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया हो मैं देखते ही तुरंत बता सकता हूं कि ये किसकी कृति है. जहाँगीर को प्राणियों से बहोत लगाव था इसलिए उसने अपने साम्राज्य में कई प्राणी संग्रहालय भी बना रखे थे। जहाँगीर को पेंटिंग के अलावा यूरोपियन और पारसी कला बहोत पसंद थी। जहाँगीर ने अपने साम्राज्य में पारसी परम्पराओ को विकसित कर रखा था। विशेषतः तब जब एक पारसी रानी, नूर जहा ने उनका मन मोह लिया था।
जहाँगीर के साम्राज्य की विशेष धरोहर के रूप में कश्मीर में स्थित उनका शालीमार बाग़ है। मुघल वैज्ञानिको द्वारा जहाँगीर के शासनकाल में दुनिया का दिव्य पिंड बनाया गया, जिसे कही से भी किसी प्रकार का कोई जोड़ नहीं था। जहाँगीर ने अपनी सेना को ये बता रखा था की, ”वे किसी को भी जबरदस्ती मुस्लिम बनने के लिए ना कहे”। जहाँगीर द्वारा जिझया को भी लगाने से मना किया गया। जहा उस समय की इंग्लिश पुजारी एडवर्ड टेरी ने ये कहा की, “हर एक इंसान को अपने-अपने इच्छा नुसार मनचाहे धर्म में बिना किसी दबाव के जाना चाहिये, तभी एक अच्छे साम्राज्य का निर्माण हो पायेंग”। जहाँगीर के दरबार में हर कोई आ-जा सकता था, फिर चाहे वो किसी भी धर्मं का क्यू ना हो। उनके दरबार में दोनों मुस्लिम प्रजातिया सुन्नी और शिअस को समान दर्जा दिया जाता था।
जब रानी गर्भवतीं हुईं तो अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी के शेख़ सलीम चिश्ती के दरबार में रहने के लिए भिजवा दिया. अकबर की ख्वाहिश थी कि तैमूर का वंशज चिश्ती के साए में ही दुनिया में आये. बताते हैं कि शेख़ सलीम चिश्ती ने अकबर को तीन बेटे होने का वरदान दिया था. इस पर अकबर ने कहा कि वे पहला बेटा शेख़ की सरपरस्ती में देंगे. लिहाज़ा, जहांगीर के शुरुआती नाम ‘शेखू’ और ‘सलीम’ के चिश्ती के ही नामों पर धरे गए थे. जहांगीर जिस तख़्त पर बैठा, वह बाबर, हुमायूं और अकबर के जीवन भर की लड़ाइयों का नतीजा था. मेवाड़ और दक्कन के कुछ इलाकों के अलावा अकबर ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में पिरो दिया था. जहांगीर ने मेवाड़ को इसमें मिलाया पर इस का भी सूत्रधार शाहजहां था. कहते हैं कि जहांगीर न तो महत्वाकांक्षी था और न ही उसमें कोई ख़ास जीवट था ।उसे शिकार से भी प्रेरित थी।
नूरजहां ईरानी निवासी मिर्जा ग्यास बेद की बेटी थी. उनका वास्तविक नाम मेहरून्निसा था. 1549 ई में नूरजहां का विवाह अलीकुली बेग से हुआ. जहांगीर ने अलीकुली बेग को एक शेर मारने के कारण शेर अफगान की उपाधि दी थी. 1607 ई में शेर अफगान की मौत के बाद मेहरून्निसा अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेवा में नियुक्त हुई. सबसे पहले जहांगीर ने नवरोज के अवसर पर मेहरून्निसा को देखा था और उससे 1611 ई में विवाह कर लिया. विवाह के बाद जहांगीर ने उसे नूरमहल और नूरजहां की उपाधि दी. उन्होंने अपनी कई ताकतों को उनकी पत्नी नूरजहाँ को दे रखा था। जिस से उनकी पत्नी को उनकी इन बुरी आदतों की वजह से दरबार संभालना पड़ता, और अंतिम वर्षो में मुघल साम्राज्य के गिरने का यही कारण बना। जहांगीर के मकबरे का निर्माण नूरजहां ने करवाया था.
इतमाद-उद-दौला का मकबरा 1626 ई में नूरजहां बेगम ने बनवाया था.मुगलकालीन वास्तुकला के अंतर्गत यह पहली आसी इमारत थी जो सफेद संगमरमर से बनी थी.अशोक को कौशांबी स्तंभ पर समुंद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति और जहांगीर का लेख उत्कीर्ण है.जहांगीर के मकबरे का निर्माण नूरजहां ने करवाया था. जहांगीर के शासनकाल में कैप्टन हॉकिंस, सर टॉमस रो एडवर्ड टेरी जैसे यूरोपीय यात्री आए थे.
“जहांगीर के पांच बेटे थे”
(i) खुसरो (ii) खुर्रम (iii) शहरयार (iv) जहांदार
जहाँगीर उनकी बुरी आदतों (व्यसन) के बिना अधूरे है। उन्होंने अपने पुत्रो के सामने एक विशाल साम्राज्य की मिसाल कड़ी कर रखी थी लेकिन साथ ही उनको शराब, अफीम और महिलाओ के लत होने से उनकी काफी आलोचना की जाती।
अफीम और शराब के जादा सेवन के कारण अंतिम दिनों में बीमार रहता था। 28 अक्टूबर 1627 ई. में कश्मीर से वापस आते समय रास्ते में ही भीमवार नामक स्थान पर निधन हो गया। लाहौर के पास शहादरा में रावी नदी के किनारे दफनाया गया।