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शाहजहाँ की बड़ी और सबसे लाडली बेटी  “जहाँआरा बेगम”

शाहजहाँ की बड़ी और सबसे लाडली बेटी “जहाँआरा बेगम”

Posted on April 3, 2019April 8, 2024 By admin

जहाँआरा का जन्म दो अप्रैल, 1614 को हुआ था. जहाँआरा बेगम का जन्म भारत के अजमेर, राजस्थान में मुग़ल वंश में हुआ था। बेगम के पिता का नाम शाहजहाँ था और माता का नाम अर्जुमन्द बानो था।

जहां आरा के पैदा होने पर आगरा के लाल किले को फूलों से सजायाया गया। क्यों न हो शाह जहां और मुमताज महल के प्यार की निशानी जो आयी थी। वर्ष 1644 की बात है, जब शाही घराने की बेटी के इत्र में अचानक आग लग गई। वहां रखे कपड़े, कमरे में लगे परदे और बाकी का सारा सामान धू-धू कर जलने लगा। इसी आग में फंसी थी एक 13 साल की बच्ची। वहां मौजूद लोगों ने बच्ची की जान को बचा लिया, लेकिन वो बुरी तरह जल गई थी। ये वो राजकुमारी थी, जिसकी तीमारदारी के लिये एक से एक बड़े वैद्य व सहायक वैद्य आये, लेकिन असली तीमारदारी तो शाह जहां ने की। जी हां वही शाह जहां, जिन्होंने ताजमहल बनवाया था। शाह जहां अपनी इस बेटी को इतना चाहते थे कि अपने सारे शाही कार्य छोड़ कर वे खुद बेटी की सेवा में जुट गये थे। और तो और जब राजकुमारी ठीक हो गईं, तो शाहजहां उन्हें खुद अजमेर में मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह ले गये।

जहां आरा छठे मुगल शासक औरंगजेब की बड़ी बहन थीं। शाहजहाँ के एक दरबारी की पत्नी हरी ख़ानम बेगम ने उन्हें शाही जीवन के तौर तरीक़े सिखाए. जहांआरा बला की हसीन होने के साथ-साथ विदुषी भी थीं, जिन्होंने फ़ारसी में दो ग्रंथ भी लिखे थे. 1648 में बने नए शहर शाहजहाँनाबाद की 19 में से 5 इमारतें उनकी देखरेख में बनी थीं. सूरत बंदरगाह से मिलनेवाली पूरी आय उनके हिस्से में आती थी. उनका ख़ुद का पानी का जहाज़ ‘साहिबी’ था जो डच और अंग्रेज़ों से तिजारत करने सात समंदर पार जाता था। शाहजहाँनाबाद जिसे हम आज पुरानी दिल्ली कहते हैं का नक्शा जहाँआरा बेग़म ने अपनी देखरेख में बनवाया था. उस समय का सबसे सुंदर बाज़ार चांदनी चौक भी उन्हीं की देन है. वो अपने ज़माने की दिल्ली की सबसे महत्वपूर्ण महिला थीं. उनकी बहुत इज़्ज़त थी, लेकिन साथ ही वो बहुत चतुर भी थीं. दारा शिकोह और औरंगज़ेब में दुश्मनी थी. अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देते वक्त मुमताज महल का इंतकाल हो गया। उनके जाने के तुरंत बाद जहां आरा को मुगल सल्तनत की पदशाह बेगम बनाया गया। मुमताज महल ने दुनिया को अलविदा कहने से पहले दारा श‍िकोह की शादी तय की थी। उनके जाने के बाद जहां आरा को पहली जिम्मेदारी दारा श‍िकोह का निकाह करवाने की मिली। जहां आरा ने पूरी मेहनत के साथ दावत-ए-वलीमा का आयोजन करवाया। आयोजन की बागड़ोर उन्हीं के हाथ में थी।

जहाँआरा ने दारा शिकोह का साथ दिया. लेकिन जब औरंगज़ेब बादशाह बने तो उन्होंने जहाँआरा बेगम को ही पादशाह बेगम बनाया.”

हिंदुओं के हक के लिये लड़ीं जहां आरा :जहां आरा ने आगे चलकर समाज में अपना एक मुकाम हासिल किया और औरंगजेब के उस कानून के ख‍िलाफ आवाज़ उठायी, जिसमें गैर मुसलमानों से चुनाव-कर वसूलने की बात कही गई थी। जहां आरा का कहना था कि हिंदू-मुसलमान के नाम पर कानून बनाने से देश बंट जायेगा बिखर जायेगा, सब अलग-थलग हो जायेंगे। जहां आरा ने अपने जीवन के अंत तक आम जनता के अध‍िकारों के लिये आवाज़ उठाई। उनका निधन 67 वर्ष की आयु में 16 सिसम्बर 1681 को हुआ। उन्हें नई दिल्ली में निजामुद्दीन दरगाह भवन में दफनाया गया।

जहाँआरा, हिन्दू धर्म के प्रति सम्मान : जहाँआरा, एक राज महल में जन्मी बेटी थी फिर भी वह धर्म और इनसानियत का बहुत सम्मान करती थी। जिसके कारण एक बार उसने अपने भाई औरंगज़ेब के बनाये गये कानून के खिलाफ आवाज़ भी उठाई थी, जिसमें गैर -मुसलमानों से चुनाव के लिए कर वसूला जाता था। जहाँआरा का मानना था की औरंगज़ेब के इस कानून से देश का बटवारा हो जायेगा और देश बिखर जायेगा। वह हिंदू मुस्लिम धर्म के लोगों को एक साथ लेकर चलना चाहती थी। ऐसी कई कारनामे जहाँआरा – Jahanara ने अपने जीवन काल के दौरान किये जिस के कारण आम जनता उसका तह दिल से उसका सम्मान करती थी।

 

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