सोनपुर मेला बिहार के सोनपुर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगता हैं।यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हैं। मेले को ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता है जबकि स्थानीय लोग इसे छत्तर मेला पुकारते हैं।बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किमी तथा वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर से 3 किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाले इस मेले ने देश में पशु मेलों को एक अलग पहचान दी है।इस महीने के बाकी मेलों के उलट यह मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है।
शुरू होने की पौराणिक मान्यता
जैसे हर एक तीर्थ स्थान और मेले की पौराणिक कथा होती है वैसे ही यहाँ की भी एक कथा है की ये मेला कैसे शुरू हुआ था। कहा जाता है की भगवान् विष्णु के दो अनन्य भक्त “जय” और “विजय” शापित होकर धरती में पैदा हुए। उनमे से एक ग्राह यानी की मगरमच्छ बना और दूसरा गज यानी की हाथी बना। एक दिन गज जब नदी में पानी पीने गया तो ग्राह ने उसे पकड लिया और काफी मेहनत के बाद भी गज उससे छूट नहीं सका।
दोनों की लड़ाई कई वर्षो तक चली और इसके बाद गज ने भगवान् विष्णु का आह्वान किया तो भगवान् ने सुदर्शन चक्र छोड़ा और ग्राह की मौत हो गई और गज मुक्त हुआ। इसके बाद कई सारे देवता इस जगह उसी समय प्रगट हुए और उन्होंने भगवान् विष्णु के साथ साथ गज का भी जयकारा लगाया। इसके ब्रम्हा ने यहाँ पर भगवान् शिव और विष्णु दोनों की मूर्ती लगाईं और इसे नाम दिया हरिहर।
पूरे भारत में इकलौती ऐसी जगह है जहाँ भगवान् शिव और विष्णु की मूर्ती एक साथ रखी गई है। गज की इस जीत को याद करने के लिए हर साल यहाँ उत्सव होने लगा और आज ये मेले का स्वरुप ले चुका है। कहा जाता है की भगवान् राम भी यहाँ आये थे और उन्होंने हरिहर की पूजा की थी।
इसके अलावा सिख धर्म के गुरु नानक देव के यहाँ आने का जिक्र धर्मो में मिलता है और भगवान् बुद्ध भी यहाँ अपनी कुशीनगर की यात्रा के दौरान आये थे। कहा जाता है की चन्द्रगुप्त मौर्य भी इसी मेले से हाथी खरीदा करता थे और इसके अलावा वीर कुंवर सिंह ने 1857 की लड़ाई में यही से ही अपने लिए हाथी-घोड़े खरीदे थे।
पहले यह मेल हाजीपुर में लगता था और सोनपुर में केवल हरिहर की पूजा होती थी लेकिन मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद यह मेला सोनपुर में भी लगाया जाने लगा और तब से यही लग रहा है।
सोनपुर मेले का इतिहास
इस मेले की शुरुआत मौर्य काल के समय में हुआ. माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य सेना के लिए हाथी खरीदने के लिए यहां आते थे. स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर का योगदान है इन इलाकों के बुजुर्गों की मानें तो 1857 की लड़ाई के लिए वीर कुंवर सिंह जनता ने यहां से घोड़ों की खरीदारी की थी. इस मेले में हाथी, घोड़े,ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पक्षियों सहित कई दूसरी प्रजातियों के पशु-पक्षियों का बाजार सजता था.
देश से ही नहीं अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे. इस मेले से पौराणिक कथाएं जुड़ी है भगवान विष्णु के भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के बीच कोनहारा घाट पर संग्राम हुआ. जब हाथी कमजोर पड़ने लगा तो अपने ईश्वर का याद किया भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के बीच युद्ध का अंत किया था. इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैंकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते है. सच पूछिये तो इस मेले में बहुत सारे लोग कार्तिक स्नान करने और भगवान के दर्शन के लिए भी आते हैं. यही आस्था है जिसने अबतक कई लोगों को मेले से जोड़े रखा है. मैंने कई लोगों से बात की ज्यादातर लोग इस मेले में अपनी आस्था की वजह से खीचें चले आते हैं.
सोनपुर मेले की ख़ास बात
यह मेला लगभग 5 से 6 किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में लगाया जाता है। इसमें तरह तरह के जानवर बिकते है। विदेशी इस मेले में भारी संख्या में आते है। इस मेले में बिहार की पारंपरिक छटा भी दिखाई देती है और खाने पीने से लेकर मनोरंजन की चीजे भी बेचीं जाती है। घरेलू सामान, रोजमर्रा की चीजे, पशु, मनोरंजन के साधन आदि यहाँ बेचे जाते है जो की यहाँ की प्रमुखता है।
बदलते स्वरुप में मुख्य आकर्षण –
जैसा ही हर जगह की रीति है की आधुनिकता संस्कृति पर हावी हो जाती है वैसे ही यहाँ भी हुई। इस मेले में धीरे धीरे नाच और नौटंकी वाले आने लगे जो की पहले भी आते थे लेकिन अब उन्होंने थिएटर लगाना शुरू कर दिया। यहाँ अश्लील डांस आदि कराया जाता है।
ये देखने के लिए आपको पांच सौ से हजार रुपये का टिकट देना पड़ता है जो की लोग ख़ुशी ख़ुशी पे करते है। देश ही नहीं बल्कि भारत के बाहर से यहाँ लड़कियां बुलाई जाती है और उनका नाच होता है।
इस अश्लीलता को रोकने के लिए एक बार वहां के स्थानीय डीएम और एसपी ने इसमें रोक लगा दी थी लेकिन बाद में थिएटर वालो ने ऐसा विरोध किया उन्हें झुकना पड़ा। उन्होंने गधे के ऊपर डीएम और एसपी का नाम लिखा और पूरे शहर में घुमाया जिससे तंग आकर उन्हें फिर से इजाजत मिली।
एक समय पर नौटंकी और थिएटर में आने वाली मल्लिका गुलाब बाई का यहाँ जलवा हुआ करता था जो की लोगो के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र थी। इसके अलावा अब यह एक्सपो मेला बन गया है। अलग अलग वाहनों के शोरूम कुछ समय के लिए यहाँ बनाये जाते है और टेक्नोलॉजी की सभी चीजे मिलती है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ है संस्कृति से शुरू हुआ ये मेला अब प्रदर्शनी का रूप लेता जा रहा है।
मेले की दस खास बातें जो जानने योग्य हैं.
- बताया जाता है कि यह मेला पहले हाजीपुर में लगता था और बाबा हरिहरनाथ की पूजा सोनपुर में होती थी. मुगलकाल में आरंगजेब ने इस मेले का आयोजन हाजीपुर से हटाकर सोनपुर गंडक नदी के तट पर आयोजित करने का आदेश दिया.
- बुजुर्ग लोगों की माने तो एक दौर ऐसा था जब मेले में सबकुछ बिकता था. यहां पशुओं के अलावा गुलाम के तौर पर महिला पुरुषों की भी बिक्री होती थी. बाद में धीरे-धीरे वह बंद हो गया.
- मेले में मुंबई, कोलकाता और लखनऊ का मीना बाजार सजता है. जहां से स्थानीय महिलाएं साल भर के लिये अपनी सौंदर्य प्रसाधन सामग्री की खरीदारी करती हैं.
- सोनपुर का मेला वहीं लगता है जहां पौराणिक मान्यता के अनुसार विष्णु के भक्त हाथी यानी गज और ग्राह यानी मगर में भयंकर युद्ध हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार गज को बचाने के लिये भगवान विष्णु गंडक के तट पर स्वयं आये थे.
- यहां चिड़ियों और अच्छी नस्ल के कुत्तों के लिये अलग से बाजार लगता है. हालांकि चिड़ियों की खरीद-बिक्री और हाथी की खरीद-बिक्री पर रोक है फिर भी कुछ व्यवसायी उसे बेचने के लिये यहां लाते हैं.
- मेले में हाथियों की बिक्री पर सरकार की ओर से पूरी तरह रोक है फिर भी यहां हाथियों की खरीद बिक्री होती है. जो अब बहुत कम हो गयी है.
- कार्तिक पूर्णिमा में गंगा स्नान के बाद यह मेला पहले एक महीनों तक चलता है लेकिन सरकार के निर्देशानुसार मेला मात्र 15 दिनों के लिए लगता है.
- मेले का खास आकर्षण थियेटर भी होता है जहां लोगों के मनोरंजन के लिये अन्य राज्यों से आये डांसर लोगों का मनोरंजन करते हैं.
- इस बार बिहार सरकार की ओर से शराबबंदी को सफल बनाने के लिये सैंड आर्टिस्ट द्वारा एक कलाकृति का निर्माण किया गया है, जिसे भारी संख्या में लोग देखने के लिये आ रहे हैं.
- मेले में विदेशी पर्यटकों के लिये विशेष व्यवस्था की जाती है. उनके ठहरने के लिये विशेष टेंट और खाने-पीने के लिये बिहार सरकार पर्यटन विभाग की ओर से स्पेशल व्यवस्था की जाती है. मेले में देश-विदेश से सैकड़ों पर्यटक आते हैं.
- मेले के दौरान गंगा स्नान का काफी महत्व माना गया है, इसलिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु बूढ़ी गंडक नदी में और गंगा में डुबकी लगाते हैं.
- मेले में पूरे देश के अच्छी नस्ल के घोड़ों की खरीद बिक्री होती है, दूर-दराज से घोड़े खरीदने के लिये लोग आते हैं.