अकबर एक बहादुर और शक्तिशाली शासक थे। उनका साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में मराठवाड़ा तक फैला था। उन्होंने गोदावरी नदी के आस-पास के सारे क्षेत्रो को हथिया लिया था और उन्हें भी मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया था। उनके अनंत सैन्यबल, अपार शक्ति और आर्थिक प्रबलता के आधार पर वे धीरे-धीरे भारत के कई राज्यों पर राज करते चले जा रहे थे। अकबर अपने साम्राज्य को सबसे विशाल और सुखी साम्राज्य बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने कई प्रकार की नीति अपनाई जिससे उनके राज्य की प्रजा ख़ुशी से रह सके।
अकबर का जन्म, बचपन :-
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन 15 अक्तूबर 1542 को अमरकोट में हुआ था। अकबर का पूरा नाम बदरुद्दीन मुहम्मद अकबर था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। अकबर के पिता का नाम हुमायूँ था। उनकी माता का नाम हमीदा बानू था।
★ अकबर की तालीम :-
अकबर आजीवन निरक्षर रहा। प्रथा के अनुसार चार वर्ष, चार महीने, चार दिन पर अकबर का अक्षरारम्भ हुआ। और मुल्ला असामुद्दीन इब्राहीम को शिक्षक बनने का मौका मिला। लेकिन वह पढ़ नहीं सका। अकबर को बोलने-चालने मंक अच्छी फारसी आ गई थी। अकबर ने कबूल किया और कुछ दिन रेखाएं भी खींची, लेकिन आंखे गड़ाने में उसकी रूह कांप जाती थी।
बिल्कुल भी पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अकबर बहुत ज्ञानी था। अकबर बहुश्रुत था। उसकी याद्दाश्त की सभी दाद देते हैं। इसलिए सुनी हुई बातें उसे बहुत जल्दी याद आ जाती थी। हाफिज, रूमी आदि की काफी कविताएं उसे याद थीं। उस समय की प्रसिद्ध कविताओं में शायद ही कोई होगी, जो उसने सुनी नहीं थी। उसके साथ बाकायदा पुस्तक पाठी रहते थे। फारसी की पुस्तकों को समझने में उसे परेशानी नहीं होती थी। अरबी पुस्तकों के लिए वह अनुवाद फारसी में सुनता था।
★ अकबर बना नाबालिग बादशाह :-
हुमायूँ के इंतकाल के बाद कलानोर में 14 वर्ष के अकबर को बादशाह घोषित कर दिया गया, चूंकि अकबर अभी बच्चा ही था तो उसके संरक्षक के तौर पे बैरम खान को नियुक्त किया गया।
अकबर को विरासत के नाम पे बहुत कम हुकूमत मिली थी । आगरा से पंजाब तक ही उसकी सल्तनत सीमित थी। हालात कुछ ऐसे थे को उसके पिता हुमायूं और दादा बाबर के जीते हुए पुराने राज्य उसके हाथ से बाहर जा चुके थे।
★ अकबर के सैन्य अभियान :-
शेरशाह सूरी ने छोटे से अकबर को बादशाह बनते देखा और सोचा कि क्यों न मुग़लो पे फिर से आक्रमण किया जाए, शेरशाह ने अपनी सेना को साथ लिया और फिर से आगरा और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था| बैरम खान के नेतृत्व में उन्होंने सिकन्दर शाह सुरी के खिलाफ मोर्चा निकाला |उस समय सिंकंद्र शाह सुरी का सेनापति हेमू था और बैरम खान के नेतृत्व में अकबर की सेना ने हेमू को 1556 में पानीपत के दुसरे युद्ध में पराजित कर दिया | इसके तुरंत बाद मुगल सेना ने आगरा और दिल्ली पर अपना आधिपत्य कर दिया |
अकबर ने दिल्ली पर विजयी प्रवेश किया और एक महीने तक वहा पर निवास किया | उसके बाद अकबर और बैरम खान दोनों पंजाब लौट गये जहा पर सिकंदर शाह फिर से सक्रिय हो गया था |अगले 6 महीनों ने मुगलों ने सिंकन्दर शाह सुरी के खिलाफ दूसरा बड़ी लड़ाई जीत ली थी | सिकन्दर शाह इसके बाद बंगाल भाग गया | अकबर की सेना ने वर्तमान पाकिस्तान के लाहोर और पंजाब इलाके पर कब्ज़ा कर लिया था। अकबर ने राजपुताना राजाओं को हराकर अजमेर पर भी कब्जा कर लिया और इसके बाद ग्वालियर किले पर भी सुरी सेना को हराकर कब्ज़ा कर लिया | अकबर के शासन में मुगल परिवार की बेगमो को काबुल से भारत लाया गया | जो उसके दादा बाबर और पिता हुमायु नही कर पाए वो अकबर ने कर दिखाया |
1559 में मुगलों ने राजपुताना और मालवा की तरफ कुच किया | अकबर के अपने सरंक्षक बैरम खान से विवाद के कारण उसको साम्राज्य विस्तार के लिए रोक दिया | 18 वर्ष की उम्र में ही जवान बादशाह ने राजपाट के कार्यो में रूचि दिखाना शुरू कर दिया | अकबर ने अपने रिश्तेदारों के बहकावे में आकर बैरम खान को 1560 में निष्काषित कर मक्का में हज पर जाने का आदेश दे दिया |
बैरम खान मक्का के लिए रवाना हो गया और लेकिन रस्ते में शत्रुओ के बहकावे में आकर क्रांतिकारी बन गया |बैरम खान ने मुगल सेना पर पंजाब में धावा बोल दिया लेकिन पराजित होकर समर्पण करना पड़ा | अकबर ने उसे फिर भी क्षमा कर दिया और उसे फिर मक्का जाने का विकल्प दिया जिसको उसने स्वीकार कर लिया | मक्का में जाते वक़्त व्यक्तिगत प्रतिशोध के चलते एक अफ़ग़ानी ने उसकी हत्या कर दी |
★ अकबर का राजपुताना पर आक्रमण :-
अकबर ने अब तक उत्तरी भारत के काफी हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया था | अब अकबर राजपुताना पर आक्रमण करना चाहता था | मुगलों ने राजपुताना के उत्तरी हिस्से अजमेर और नागोर पर तो कब्ज़ा कर लिया था | अब अकबर को मेवाड़ की धरती पर कदम रखकर उसे अपना बनाना था | इससे पहले राजपुत राजाओ ने मुस्लिम शाशको के खिलाफ कभी भी समर्पण नहीं किया था | 1561 में मुगलों ने राजपूत लोगो से सम्पर्क बनाकर कूटनीति से अपने अंदर शामिल कर लिया | कई राजपूत राज्यों ने अकबर की आधिप्त्यता स्वीकार कर ली थी | केवल मेवाड़ के शाशक उदय सिंह अकबर की कूटनीति से दूर रहे |
राजा उदय सिंह के पिताजी राणा सांगा 1527 में बाबर के खिलाफ खानवा के युद्ध में लड़ाई के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गये थे | राजा उदयसिंह उस समय सिसोदिया वंश के शाषक थे | राजा उदयसिंह ने अकबर
की सेना के आगे घुटने टेकने से मना कर दिया | 1567 में अकबर की सेना ने मेवाड़ के चित्तोड़गढ़ दुर्ग पर हमला बोल दिया और 4 महीनों तक घेराबंदी करने के बाद 1568 में दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया | उस समय उदयसिंह दो राजपूत योद्धाओ जयमल और पत्ता को छोडकर मेवाड़ की पहाडियों में चले गये थे | अकबर ने उन दोनों के शीश काटकर दीवार पर लटका दिए |अकबर तीन दिन तक चित्तोड़गढ़ रहा और फिर से आगरा लौट गया | उदयसिंह की शक्ति और प्रभाव इस वजह से कम हो गया
1568 में चित्तोद्गढ़ दुर्ग के बाद रणथम्बोर दुर्ग पर हमला करने का विचार बनाया | उस समय रणथम्बोर पर हाडा राजपूत का राज था और उस समय का सबसे मजबूत किला माना जाता था | लेकिन कुछ महीनों के संगर्ष पर अकबर ने उस पर भी कब्जा कर लिया | अकबर ने अब तक पुरे राजपुताना को अपना बना लिया था | कई राजपूत राजाओ ने समर्पण कर दिया था और केवल मेवाड़ ही बच गया था | उदयसिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी प्रताप सिंह ने 1576 में अकबर की सेना से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ाई की और प्रताप की सेना को हरा दिया | अकबर ने राजपुताना पर अपनी नीव रख दी और फतेहपुर सीकरी को राजपुताना की राजधानी बनाया | महाराणा प्रताप ने लगातार मुगलों से युद्ध करते रहे और अपने पूर्वजो की जमीन पर फिर से कब्जा किया था |
★ हिन्दू धर्म को देता था सम्मान :-
अकबर एक मुसलमान थे पर दूसरे धर्म एवं संप्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उन्हें विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता है । उन्होंने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गए थे कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उन्हें यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। अकबर का साम्राज्य पूरे हिंदुस्तान तक फैल चुका था । बड़ा और विशाल होने के कारण जो लोग थे वो हिन्दू भी थे और मुस्लिम भी थे। हिंदु धर्म के लोगों के हितो के लिए उसने हिंदु सम्राटो की नीति को भी अपनाया और मुग़ल साम्राज्य में लागू किया। वे विविध धर्मो के बीच हो रहे भेदभाव को दूर करना चाहते थे। उनके इस नम्र स्वाभाव के कारण उन्हें लोग एक श्रेष्ठ राजा मानते थे और ख़ुशी-ख़ुशी उनके साम्राज्य में रहते थे। हिन्दुओं के प्रति अपनी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देते हुए उन्होंने उन पर लगा ‘जजिया’ नामक कर हटा दिया।
अकबर ने अपने जीवन में जो सबसे महान कार्य करने का प्रयास किया, वह था ‘दिन-ए-इलाही’ नामक धर्म की स्थापना। इसे उन्होंने सर्वधर्म के रूप में स्थापित करने की चेष्टा की थी। 1575 में उन्होंने एक ऐसे इबादतखाने (प्रार्थनाघर) की स्थापना की थी, जो सभी धर्मावलम्बियों के लिए खुला था, वो अन्य धर्मों के प्रमुखों से धर्म चर्चायें भी किया करते थे।
★ साहित्य और कला का था प्रेमी :-
साहित्य एवं कला को उन्होंने बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया। अनेक ग्रंथो, चित्रों एवं भवनों का निर्माण उनके शासनकाल में ही हुआ था। उनके दरबार में विभिन्न विषयों के लिए विशेषज्ञ नौ विद्वान् थे, जिन्हें ‘नवरत्न’ कहा जाता था। अकबर को भारत के उदार शासकों में गिना जाता है। संपूर्ण मध्यकालीन इतिहास में वो एक मात्र ऐसे मुस्लिम शासक हुए है जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के महत्त्व को समझकर एक अखण्ड भारत निर्माण करने की चेष्टा की।
★ अकबर का निर्माण कार्य :-
मुगल स्थापत्य कला हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य का मिश्रण था | अकबर ने इन दोनों के मिश्रण से कई इमारते बनवाई |अकबर के निर्माण का अपना अलग तरीका था जिससे उसने भवन ,इमारते ,महल , मस्जिद , कब्रे और किले बनवाए |अकबर ने सबसे पहले आगरे के किले का निर्माण करवाया इस किले के दो द्वार दिल्ली गेट और अमर सिंह गेट है | अकबर ने लाल पत्थरों से 500 से भी ज्यादा इमारतो का निर्माण करवाया जिसमे से कुछ अभी भी है और कुछ लुप्त हो गये है | इसमें अकबरी महल और जहाँगीर महल इन दोनों महलो को एक ही तरीके से बनवाया | इसके बाद उसने लाहौर का किला और अलाहबाद का किला बनवाया | उसकी स्थापत्य कला का सबसे सुंदर नमूना फतेहपुर सीकरी था जिसे उसने अपनी राजधानी बनाया था | इस वीरान जगह को पूरा करने में अकबर को 11 साल लगे |
इस शहर को उसने तीन तरफ से दीवारों से और एक तरफ से कृतिम झील बनवाई | इस दीवार के 9 दरवाजे है और इसका मुख्य द्वार आगरा गेट है | उसने बुलंद दरवाज़ा का भी निर्माण करवाया जो मार्बल और बलुआ पत्थरों से निर्मित है | दीवाने ख़ास भी इसकी प्रसिद्ध इमारत है | अकबर ने गरीबो की मदद करने के लिए कई सरायो का निर्माण करवाया | इसके अलावा कई विद्यालयों और इबादत करने की जगहों का निर्माण करवाया |
★ अकबर के पुर्तगालियों से संबंध :-
1556 में अकबर के गद्दी लेने के समय पुर्तगालियों ने महाद्वीप के पश्चिमी तट पर बहुत से दुर्ग व निर्माणियाँ लगा ली थीं और बड़े स्तर पर उस क्षेत्र में नौवहन और सागरीय व्यापार नियंत्रित करने लगे थे। इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीन ही रहना पढ़ता था। जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी। 1572 में किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे।
★ अकबर की मृत्यु :-
3 अक्टूबर 1605 में अकबर को पेचिश की बीमारी हुई जिससे वे कभी ठीक नहीं हो पाए। उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को हुई, उसके बाद आगरा में उनको दफ़नाया गया बनाई गयी।