हमारे न्यायिक समाज में एक लोकप्रिय सूक्ति है – “न्याय में देरी, अन्याय है” इसका मतलब देर से मिले न्याय की कोई सार्थकता नहीं होती। अब इसी बात को ध्यान में रखते हुये, शासन यह सुनिश्चित करेगा कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय व न्यायलय से दूर न रह जाए। इसी बात को ध्यान मे रखते हुए लोक अदालतों के गठन को बल दिया गया है ,ताकि छोटे मोटे मामलों को समय रहते निपटाया जा सके ।
★ लोक अदालत क्या है ★
लोक अदालत का मतलब होता है लोगों की अदालत इसकी संकल्पना हमारे गाँवों में लगने वाली पंचायतों पर आधारित है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम-1978 की धारा 19 में लोक अदालत के आयोजन (गठन ) का प्रावधान किया गया है। लोक अदालत एक ऐसी अदालत / मंच है जहाँ पर न्यायालयों में विवादों / लंबित मामलो या मुकदमेबाजी से पहले की स्थिति से जुड़े मामलो का समाधान समझौते से और सौहार्दपूर्ण तरीके से किया जाता है। इसमें विवादों के दोनों पक्ष के मध्य उत्त्पन हुए विवाद को बातचीत या मध्यस्ता के माध्यम से उनके आपसी समझौते के आधार पर निपटाया जाता है।
● लोक अदालत को अमल में लाने के दो मुख्य कारण हैं —
1- आर्थिक रूप से कमजोर होने कि वज़ह से बहुत सारे लोग न्याय पाने के लिए संसाधन नहीं जुटा पाते।
2- दूसरा अगर वह कोर्ट तक पहुँच भी जाते हैं, तो करोड़ों मुक़दमे लंबित और अपूर्ण होने के कारण उनको समय से न्याय नहीं मिल पाता।
● लोक अदालत की शक्तियां क्या है ●
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 22 उपधारा (1) के तहत लोक अदालत को इस अधिनियम के अधीन कोई अवधारण करने के प्रयोजन के लिए, वही शक्तियां प्राप्त होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अधीन सिविल न्यायालय में है।
● किसी साक्षी को समन कराना, हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा कराना।
● किसी दस्तावेज को मगवाना या उसको पेश किया जाना।
● शपथ पत्र पर साक्ष्य ग्रहण करना।
● किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक दस्तावेज या अभिलेख या ऐसे दस्तावेज या अभिलेख की प्रति की अध्यपेक्षा करना।
● ऐसे अन्य विषय जो न्यायालय द्वारा विहित किया जाये।
◆ अदालत के पास दो विकल्प ◆
पहला – : पक्षकारों में सुलह व बातचीत के जरिए विवाद का सौहार्द्रपूर्ण तरीके से निपटारा।
दूसरा -: सुलह से निपटारा नहीं होने पर विवाद का गुणावगुण दोनों पक्षकारों के जवाब और दस्तावेजों सहित अन्य उपलब्ध सामग्री के आधार पर फैसला पारित करना।
लोक अदालत के लाभ क्या है ?
अधिवक्ता / वकील पर होने वाला खर्चा नहीं लगता है।
न्यायालय शुल्कः नहीं लगता है।
पक्षकारों के मध्य उतपन्न हुए विवादों का निपटारा आपसी सहमति और सुलह से हो जाता है।
मुआवजा व् हर्जाना तुरंत जाता है।
यहाँ तक कि पुराने मुकदमें में लगा न्यायालय शुल्क वापस जाता है।
किसी भी पक्षकार को दण्डित नहीं किया जाता है।
लोक अदालत का अवार्ड (निर्णय ) अंतिम होता है जिसके खिलाफ किसी न्यायालय में अपील नहीं होती।
● लोक अदालत में किस प्रकार के मामलो का निपटारा होता है ●
दीवानी सम्बंधित मामले।
बैंक ऋण सम्बंधित मांमले।
वैवाहिक एवं पारिवारिक झगड़े।
राजस्व सम्बंधित मामले।
दाखिल ख़ारिज भूमि के पट्टे।
वन भूमि सम्बंधित मामले।
बेगार श्रम सम्बंधित मामले।
भूमि अर्जन से सम्बंधित मामले।
फौजदारी सम्बंधित मामले।
मोटर वाहन दुर्घटना मुआवजा सम्बंधित दावे।
● लोक अदालत का निर्णय ● :
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 21 में लोक अदालत के द्वारा निर्णय दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
● लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक अवार्ड अंतिम होगा और यह अवार्ड (निर्णय) विवादों के सभी पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा।
● लोक अदालत के द्वारा दिए गए निर्णय के खिलाफ किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जाएगी।
● लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) के खिलाफ क्या अपील होती है ●
लोक अदालत को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के तहत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा दिया गया है। जिसके तहत लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) को सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है, जो कि दोनों पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है। लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) के विरुद्ध किसी भी न्यायलय में अपील नहीं की जा सकती है।
इन मामलों में कार्रवाई नहीं हो सकती
न्यायालयों में पहले से चल रहे व विचाराधीन प्रकरणों में।
किसी भी कानून व विधि के तहत ऐसे अपराध, जिनमें राजीनामा नहीं हो सकता है।
जहां विवाद में संपत्ति का मूल्य एक करोड़ रुपए से अधिक हो।