24 अक्टूबर, 1775 के दिन आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह, ज़फ़र का जन्म दिल्ली में हुआ था उनके पिता अकबर शाह थे और उसकी माँ लालबाई थी।। उनका नाम अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर रखा गया था, लेकिन वे बहादुर शाह जफर के रूप में अधिक लोकप्रिय थे। बहादुर शाह एक उर्दू कवि, संगीतकार और लेखक थे। ज़फर सहित दिल्ली के लगभग सभी शायरों में शायरी के प्रति दीवानगी थी। बादशाह प्राय: महल में मुशायरों का आयोजन करते थे। शायरों, दरबारियों, महिलाओं और आमजन के बैठने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती थी। सुबह चार बजे तक मुशायरा होता रहता था। इतिहासकारों के अनुसार जिस समय सिविल लाइन्स क्षेत्र में अंग्रेज फौजी घुड़सवारी और परेड के लिए तैयार हो रहे होते उस समय किले में मुशायरे का दौर समाप्त कर अलसाए लोग अपने घरों को लौट रहे होते थे। ये सभी दिन के ग्यारह-बारह बजे तक घोड़े बेचकर सोते थे। यह स्थिति अंग्रेजों के लिए अनुकूल थी। जब दिल्ली सोती वे जागकर दिल्ली पर अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित करने की योजना पर कार्य करते और अनुशासन का कट्टरता से पालन करते हुए वे रात दस बजे बिस्तरों पर चले जाते, जबकि यही समय दिल्ली के शायरों के बादशाह के महल में एकत्र होने का होता था। जब सन 1857 में ब्रिटिशो ने लगभग सम्पूर्ण भारत पर कब्ज़ा कर लिया था तो ज़फर ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया और शुरुवाती परिणाम भी पक्ष में रहे पर अंग्रेजो के छल कपट के आगे यह लड़ाई उनके पक्ष में चली गई | और बादशाह ज़फर ने हुमायूँ के मकबरे में शरण ली लेकिन मेजर हडस ने चाल से उनके बेटे मिर्ज़ा मुग़ल और खिजर सुल्तान और पोते अबू बकर को पकड़ लिया |
1837 में अपने पिता की मृत्यु के बाद वे बहुत ही कम उम्र में सिंहासन पर विराजमान हो गए थे। वे उस मुगल राजवंश के अंतिम शासक थे, जिसने लगभग 300 वर्षों तक भारत पर शासन किया था। उन्होंने अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति के कारण मजबूती के साथ अपने साम्राज्य पर शासन नहीं किया।
1857 में ब्रिटिशों ने तकरीबन पूरे भारत पर कब्जा जमा लिया था. ब्रिटिशों के आक्रमण से तिलमिलाए विद्रोही सैनिक और राजा-महाराजाओं को एक केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत थी, जो उन्हें बहादुर शाह जफर में दिखा. बहादुर शाह जफर ने भी ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई में नेतृत्व स्वीकार कर लिया. लेकिन 82 वर्ष के बूढ़े शाह जफर अंततः जंग हार गए और अपने जीवन के आखिरी वर्ष उन्हें अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े. 1857 में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व करने वाले मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हार का सामना करना पड़। जिसके बाद 17 अक्टूबर 1858 को बाहदुर शाह जफर मकेंजी नाम के समुद्री जहाज से रंगून भेज दिया गया। इस जहाज में शाही खानदान के 35 लोग सवार थे। उस दौरान कैप्टेन नेल्सन डेविस रंगून जो वर्तमान में यंगून है के इंचार्ज थे। 17 अक्टूबर 1858 को बहादुर शाह जफर को एक गैराज कैद किया गया ।
1857 में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व करने वाले मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हार का सामना करना पड़। जिसके बाद 17 अक्टूबर 1858 को बाहदुर शाह जफर मकेंजी नाम के समुद्री जहाज से रंगून भेज दिया गया। इस जहाज में शाही खानदान के 35 लोग सवार थे। उस दौरान कैप्टेन नेल्सन डेविस रंगून जो वर्तमान में यंगून है के इंचार्ज थे। 17 अक्टूबर 1858 को बहादुर शाह जफर को एक गैराज मे कैद किया गया । बहादुर शाह के कर्मचारी अहमद बेग के अनुसार 26 अक्तूबर से ही उनकी तबीयत नासाज़ थी और वो मुश्किल से खाना खा पा रहे थे। दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई और 2 नवंबर को हालत काफी बुरी हो गई थी. 3 नवंबर को उन्हें देखने आए डॉक्टर ने बताया कि उनके गले की हालत बेहद ख़राब है और थूक तक निगल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. 6 नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि उन्हें गले में लकवा मार गया है और वो लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं. 7 नवंबर 1862 को उनकी मौत हो गई. जब उनकी मौत हुई वो अंग्रेज़ों की कैद में भारत से दूर रंगून में थे.
आला दर्जे के शायर थे बहादुर शाह जफर
तबीयत से कवि हृदय बहादुर शाह जफर शेरो-शायरी के मुरीद थे और उनके दरबार के दो शीर्ष शायर मोहम्मद गालिब और जौक आज भी शायरों के लिए आदर्श हैं. जफर खुद बेहतरीन शायर थे. दर्द में डूबे उनके शेरों में मानव जीवन की गहरी सच्चाइयां और भावनाओं की दुनिया बसती थी. रंगून में अंग्रेजों की कैद में रहते हुए भी उन्होंने ढेरों गजलें लिखीं. बतौर कैदी उन्हें कलम तक नहीं दी गई थी, लेकिन सूफी संत की उपाधि वाले बादशाह जफर ने जली हुई तीलियों से दीवार पर गजलें लिखीं.